रामायण
रामायण की रचना ऋषि वाल्मीकि ने की है तथा यह विश्व साहित्य का प्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य है। रामायण की कथा भगवान श्रीविष्णु के श्रीराम अवतार की कथा है। श्रीराम का चरित्र कर्तव्य पालन में एक आदर्श पुत्र, पति, पिता तथा राजा के कर्तव्य पालन का प्रत्येक स्थिति के लिये एक कीर्तिमान है। महाकाव्य में केवल श्रीराम का पात्र ही मर्यादा पुरुषोत्तम का है और रामायण के अन्य पात्र मानव गुणों तथा अवगुणों की दृष्ठि से सामान्य हैं। वाल्मीकि रामायण से प्रेरणा ले कर कई कवियों ने श्रीराम कथा पर महाकाव्यों की रचना की जिन में से गोस्वामी तुलसीदास कृत हिन्दी महाकाव्य श्रीराम चरित मानस सर्वाधिक लोकप्रिय है। रामायण पर अनेक कवितायें, नाटक, निबन्ध आदि भी लिखे गये हैं तथा रामायण के कथानक पर बहुत से चल-चित्रों का भी निर्माण हुआ है। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि विश्व साहित्य में रामायण का अनुवाद विश्व की सभी भाषाओं में हो चुका है तथा भारतीय संस्कृति का कोई भी पहलू ऐसा नहीं जिसे इस महा काव्य ने छुआ ना हो।
सनातन धर्म के धार्मिक लेखक श्री तुलसीदास जी के अनुसार सर्वप्रथम श्रीरामजी की कथा भगवान श्रीशंकरजी ने माता पार्वतीजी को सुनायी थी। जहाँ पर भगवान श्रीशंकरजी माता पार्वती जी को भगवान श्रीरामजी की कथा सुना रहे थे वहाँ कागा (कौवा) का एक घोसला था और उसके भीतर बैठा कागा भी उस कथा को सुन रहा था। कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वतीजी को नींद आ गई पर उस पक्षी ने पूरी कथा सुन ली। उसी पक्षी का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ।काकभुशुण्डिजी ने यह कथा गरुड़जी को सुनाई। भगवान श्रीशंकर के मुख से निकली श्रीरामजी की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से प्रख्यात है। अध्यात्म रामायण को ही विश्व का सर्वप्रथम रामायण माना जाता है।
हृदय परिवर्तन हो जाने के कारण एक दस्यु से ऋषि बन जाने तथा ज्ञानप्राप्ति के बाद वाल्मीकिजी ने भगवान श्री रामजी के इसी वृतान्त को पुनः श्लोकबद्ध किया। महर्षि वाल्मीकिजी के द्वारा श्लोकबद्ध भगवान श्री रामजी की कथा को वाल्मीकि रामायण के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकिजी को आदिकवि कहा जाता है तथा वाल्मीकि रामायण को आदि रामायण के नाम से भी जाना जाता है।
देश में विदेशियों की सत्ता हो जाने के बाद संस्कृत का ह्रास हो गया और भारतीय लोग उचित ज्ञान के अभाव तथा विदेशी सत्ता के प्रभाव के कारण अपनी ही संस्कृति को भूलने लग गये। ऐसी स्थिति को अत्यन्त विकट जानकर जनजागरण के लिये महाज्ञानी सन्त श्री तुलसीदास जी ने एक बार फिर से भगवान श्रीरामजी की पवित्र कथा को देसी भाषा में लिपिबद्ध किया। सन्त तुलसीदास जी ने अपने द्वारा लिखित भगवान श्रीरामजी की कल्याणकारी कथा से परिपूर्ण इस ग्रंथ का नाम रामचरितमानस रखा। सामान्य रूप से रामचरितमानस को तुलसी रामायण के नाम से जाना जाता है।
कालान्तर में भगवान श्रीरामजी की कथा को अनेक विद्वानों ने अपने अपने बुद्धि, ज्ञान तथा मतानुसार अनेक बार लिखा है। इस तरह से अनेकों रामायणों की रचनाएँ हुई हैं।
संक्षिप्त रामायण कथा
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री राम, श्री विष्णु के अवतार थे। इस अवतार का उद्देश्य
मृत्युलोक में मानवजाति को आदर्श जीवन के लिये मार्गदर्शन देना था। अन्ततः श्रीश्री
राम ने राक्षस जाति के राजा रावण का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना
की।
बालकाण्ड
अयोध्या नगरी में दशरथ नाम के राजा हुये जिनकी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा नामक पत्नियाँ थीं। सन्तान प्राप्ति
हेतु अयोध्यापति दशरथ ने अपने गुरु श्री वशिष्ठ की आज्ञा से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया जिसे कि श्री ऋंगी ऋषि ने
सम्पन्न किया। भक्तिपूर्ण आहुतियाँ पाकर अग्निदेव प्रसन्न हुये और उन्होंने स्वयं प्रकट
होकर राजा दशरथ को हविष्यपात्र (खीर, पायस) दिया जिसे कि उन्होंने अपनी तीनों
पत्नियों में बाँट दिया। खीर के सेवन के परिणाम स्वरूप कौशल्या के गर्भ से श्री राम का, कैकेयी के गर्भ से भरत का तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
सीता स्वंयवर
राजकुमारों के बड़े होने पर आश्रम की राक्षसों से रक्षा हेतु ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से श्री राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। श्री राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फल वाले बाण से मार कर
समुद्र के पार भेज दिया। उधर लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर
डाला। धनुषयज्ञ हेतु राजा जनक के निमन्त्रण मिलने पर विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी मिथिला (जनकपुर) आ गये। रास्ते में श्री राम ने गौतम मुनि की स्त्री अहल्या का उद्धार किया। मिथिला में राजा जनक की पुत्री सीता जिन्हें कि जानकी के नाम से भी जाना जाता है का स्वयंवर का भी
आयोजन था जहाँ कि जनक प्रतिज्ञा के अनुसार शिव धनुष को तोड़ कर श्री राम ने सीता से विवाह किया। श्री राम और सीता के विवाह के साथ ही साथ गुरु वशिष्ठ ने भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उर्मिला से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से करवा दिया।
अयोध्याकाण्ड
श्री राम के विवाह के कुछ समय पश्चात् राजा दशरथ ने श्री राम का राज्याभिषेक करना चाहा। इस पर देवता लोगों को चिन्ता हुई कि श्री राम को राज्य मिल जाने पर रावण का वध असम्भव हो जायेगा। व्याकुल होकर
उन्होंने देवी सरस्वती से किसी प्रकार के उपाय करने की
प्रार्थना की। सरस्वती ने मन्थरा, जो कि कैकेयी की दासी थी, की बुद्धि को फेर दिया। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोप भवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे कि भरत को राजा बनाया जाये और श्री राम को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज
दिया जाये। श्री राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में निषादराज गुह्य ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आना कानी करने
के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा। प्रयाग पहुँच कर श्री राम ने भरद्वाज मुनि से भेंट की। वहाँ से श्री राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पहुँचे। वाल्मीकि से हुई मन्त्रणा के अनुसार श्री राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लगे।
अयोध्या में पुत्र के वियोग के कारण दशरथ का स्वर्गवास हो गया। वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलवा लिया। वापस
आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी की, उसकी कुटिलता के लिये, बहुत भर्तस्ना की और गुरुजनों के
आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया कर दिया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया और श्री राम को मना कर वापस लाने के लिये समस्त स्नेहीजनों
के साथ चित्रकूट चले गये। कैकेयी को भी अपने किये पर अत्यन्त पश्चाताप
हुआ। सीता के माता-पिता सुनयना एवं जनक भी चित्रकूट पहुँचे। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने श्री राम के वापस अयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव रखा जिसे
कि श्री राम ने, पिता की आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीति निभाने के लिये, अमान्य कर दिया।
भरत अपने स्नेही जनों के साथ श्री राम की
पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने श्री राम की पादुका को राज सिंहासन पर विराजित
कर दिया स्वयं नन्दिग्राम में निवास करने लगे।
अरण्यकाण्ड
कुछ काल के पश्चात श्री राम ने चित्रकूट से प्रयाण किया तथा वे अत्रि ऋषि के आश्रम पहुँचे। अत्रि ने श्री राम की स्तुति की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पातिव्रत धर्म के मर्म समझाये। वहाँ से फिर श्री राम ने आगे
प्रस्थान किया और शरभंग मुनि से भेंट की। शरभंग मुनि केवल श्री राम के दर्शन
की कामना से वहाँ निवास कर रहे थे अतः श्री राम के
दर्शनों की अपनी अभिलाषा पूर्ण हो जाने से योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और ब्रह्मलोक को गमन किया। और आगे बढ़ने पर श्री राम को स्थान स्थान पर हड्डियों के ढेर
दिखाई पड़े जिनके विषय में मुनियों ने श्री राम को बताया
कि राक्षसों ने अनेक मुनियों को खा डाला है और उन्हीं मुनियों की हड्डियाँ हैं। इस
पर श्री राम ने प्रतिज्ञा की कि वे समस्त राक्षसों
का वध करके पृथ्वी को राक्षस विहीन कर देंगे। श्री राम और आगे बढ़े और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि ऋषियों से भेंट करते हुये दण्डक वन में प्रवेश किया जहाँ पर उनकी मुलाकात जटायु से हुई। श्री राम ने पंचवटी को अपना निवास स्थान बनाया।
सीता हरण
पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा ने आकर श्री राम से प्रणय
निवेदन-किया। श्री राम ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ
हैं और उनका छोटा भाई अकेला है उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने उसके
प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करते हुये शत्रु की बहन जान कर उसके नाक और कान काट
लिये। शूर्पणखा ने खर-दूषण से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना
के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई में श्री राम ने खर-दूषण और उसकी सेना का संहार कर डाला। शूर्पणखा ने जाकर अपने भाई रावण से शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्ण मृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने श्री राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर श्री राम स्वर्ण मृग रूपी मारीच को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। मारीच के हाथों मारा गया पर मरते मरते मारीच ने श्री राम की आवाज बना कर ‘हा लक्ष्मण’ का क्रन्दन किया जिसे सुन कर सीता ने आशंकावश होकर लक्ष्मण को श्री राम के पास भेज दिया। लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता का रावण ने छल पूर्वक
हरण कर लिया और अपने साथ लंका ले गया। रास्ते में जटायु ने सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया और रावण ने उसके पंख काटकर उसे अधमरा कर दिया।
सीता को न पा
कर श्री राम अत्यन्त दुःखी हुये और विलाप करने लगे।
रास्ते में जटायु से भेंट होने पर उसने श्री राम को रावण के द्वारा अपनी दुर्दशा होने व सीता को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की
बात बताई। ये सब बताने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिये और श्री राम
उसका अन्तिम संस्कार करके सीता की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढ़े।
रास्ते में श्री राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके
द्वारा दिये गये झूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया। इस प्रकार श्री
राम सीता की खोज में सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गये।
किष्किन्धाकाण्ड
श्री राम ऋष्यमूक पर्वत के निकट आ गये। उस पर्वत पर अपने
मन्त्रियों सहित सुग्रीव रहता था। सुग्रीव ने, इस आशंका में कि कहीं बाली ने उसे मारने के लिये उन दोनों वीरों
को न भेजा हो, हनुमान को श्री राम और लक्ष्मण के विषय में जानकारी लेने के लिये ब्राह्मण
के रूप में भेजा। यह जानने के बाद कि उन्हें बाली ने नहीं भेजा है हनुमान ने श्री राम और सुग्रीव में मित्रता करवा दी। सुग्रीव ने श्री राम को सान्त्वना दी कि जानकी जी मिल जायेंगीं और उन्हें खोजने में
वह सहायता देगा साथ ही अपने भाई बाली के अपने ऊपर किये गये अत्याचार के विषय
में बताया। श्री राम ने बाली का छलपूर्वक वध कर के सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य तथा बाली के पुत्र अंगद को युवराज का पद दे दिया।
राज्य प्राप्ति के बाद सुग्रीव विलास में लिप्त हो गया और वर्षा तथा शरद् ऋतु व्यतीत हो गई। श्री राम की नाराजगी पर सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज के लिये भेजा। सीता की खोज में गये वानरों को एक गुफा में
एक तपस्विनी के दर्शन हुये। तपस्विनी ने खोज दल को योगशक्ति से समुद्रतट पर पहुँचा
दिया जहाँ पर उनकी भेंट सम्पाती से हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को लंका अशोक वाटिका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र लांघने के लिये उत्साहित
किया।
सुंदरकाण्ड
हनुमान ने लंका की ओर प्रस्थान किया। सुरसा ने हनुमान की परीक्षा ली और उसे योग्य तथा सामर्थ्यवान पाकर
आशीर्वाद दिया। मार्ग में हनुमान ने छाया पकड़ने वाली राक्षसी का वध
किया और लंकिनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश किया। उनकी विभीषण से भेंट हुई। जब हनुमान अशोक वाटिका में पहुँचे तो रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने पर त्रिजटा ने सीता को सान्तवना दी। एकान्त होने पर हनुमान ने सीता से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका दी। हनुमान ने अशोक वाटिका का विध्वंस करके रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया। मेघनाथ हनुमान को नागपाश में बांध कर रावण की सभा में ले गया। रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना परिचय श्री राम के दूत के रूप में दिया। रावण ने हनुमान की पूँछ में तेल में डूबा हुआ कपड़ा
बांध कर आग लगा दिया इस पर हनुमान ने लंका का दहन कर
दिया।
हनुमान सीता के पास पहुँचे। सीता ने अपनी चूड़ामणि दे कर उन्हें विदा किया। वे वापस
समुद्र पार आकर सभी वानरों से मिले और सभी वापस सुग्रीव के पास चले गये। हनुमान के कार्य से श्री राम अत्यन्त प्रसन्न हुये। श्री राम वानरों की सेना के साथ समुद्रतट पर
पहुँचे। उधर विभीषण ने रावण को समझाया कि श्री राम से बैर न लें इस पर रावण ने विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया। विभीषण श्री राम के शरण में आ गया और श्री राम ने उसे लंका का राजा घोषित कर दिया। श्री राम ने समुद्र से रास्ता देने की विनती की।
विनती न मानने पर श्री राम ने क्रोध किया और उनके क्रोध से भयभीत
होकर समुद्र ने स्वयं आकर श्री राम की विनती करने के पश्चात् नल और नील के द्वारा पुल बनाने का उपाय बताया।
लंकाकाण्ड
जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता
से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार
उतर गये। समुद्र के पार जाकर श्री राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और श्री राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार
से रावण मन में अत्यन्त व्याकुल हुआ। मन्दोदरी के श्री राम से बैर न लेने के लिये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर श्री राम अपनी वानर सेना के साथ सुबेल पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद श्री राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे श्री राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना।
शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर
युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से
समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने
के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले।
मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया परन्तु
यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बैठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलम्ब देख
कर श्री राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये।
रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी रावण को श्री राम की शरण में जाने की असफल
मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने श्री राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। श्री राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुऐ और अन्त
में रावण श्री राम के हाथों मारा गया। विभीषणको लंका का राज्य सौंप कर श्री राम सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थान किया।
उत्तरकाण्ड
उत्तरकाण्ड श्री राम कथा का उपसंहार है। सीता, लक्ष्मण और समस्त वानर सेना के साथ श्री राम अयोध्या वापस पहुँचे। श्री राम का भव्य स्वागत हुआ, भरत के साथ सर्वजनों में आनन्द व्याप्त हो
गया। वेदों और शिव की स्तुति के साथ श्री राम का राज्याभिषेक हुआ। अभ्यागतों की विदाई दी गई। श्री राम ने प्रजा को उपदेश दिया और प्रजा ने
कृतज्ञता प्रकट की। चारों भाइयों के दो दो पुत्र हुये। रामराज्य एक आदर्श बन गया।
उपरोक्त बातों के साथ ही साथ गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकाण्ड में श्री श्री राम-वशिष्ठ
संवाद, नारद जी का अयोध्या आकर श्री रामचन्द्र जी की स्तुति करना, शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह तथा गरुड़ जी का काकभुशुण्डि जी से श्री रामकथा एवं श्री राम-महिमा
सुनना, काकभुशुण्डि
जी के पूर्वजन्म की कथा, ज्ञान-भक्ति
निरूपण, ज्ञानदीपक
और भक्ति की महान महिमा, गरुड़ के
सात प्रश्न और काकभुशुण्डि जी के उत्तर आदि विषयों का भी विस्तृत वर्णन किया है।
रामायण के सारे चरित्र अपने धर्म का पालन करते हैं।
· श्री राम एक आदर्श पुत्र हैं। पिता की आज्ञा
उनके लिये सर्वोपरि है। पति के रूप में श्री राम ने सदैव एक पत्नीव्रत का पालन किया।
राजा के रूप में प्रजा के हित के लिये स्वयं के हित को हेय समझते हैं। विलक्षण
व्यक्तित्व है उनका। वे अत्यन्त वीर्यवान, तेजस्वी, विद्वान, धैर्यशील, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान, सुंदर, पराक्रमी, दुष्टों का दमन करने वाले, युद्ध एवं नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता एवं प्रतिभा
सम्पन्न हैं।
· सीता का पातिव्रत महान है। सारे वैभव और
ऐश्वर्य को ठुकरा कर वे पति के साथ वन चली गईं।
· रामायण
भातृ-प्रेम का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। जहाँ बड़े भाई के प्रेम के कारण लक्ष्मण उनके साथ वन चले जाते हैं वहीं भरत अयोध्या की राज गद्दी पर, बड़े भाई का अधिकार होने के कारण, स्वयं न बैठ कर श्री राम की पादुका को प्रतिष्ठित कर देते हैं।
· कौशल्या एक आदर्श माता हैं। अपने पुत्र श्री राम पर कैकेयी के द्वारा किये गये अन्याय को भूला कर
वे कैकेयी के पुत्र भरत पर उतनी ही ममता रखती हैं जितनी कि
अपने पुत्र श्री राम पर।
· हनुमान एक आदर्श भक्त हैं, वे श्री राम की सेवा के लिये अनुचर के समान सदैव
तत्पर रहते हैं। शक्तिबाण से मूर्छित लक्ष्मण को उनकी सेवा के कारण ही प्राणदान
प्राप्त होता है।
·
रावण के चरित्र से सीख मिलती है कि अहंकार
नाश का कारण होता है।
रामायण के चरित्रों से सीख लेकर मनुष्य
अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
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SHRI RAMCHARIT MANAS /
TULSI RAMAYAN
RAMCHARIT MANAS WITH ENGLISH TRANSLATION SHRI RAMCHARIT MANAS /
TULSI RAMAYAN
RAMCHARIT MANAS WITH HINDI TRANSLATION:
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