DHARMA GRANTH


   हिन्दू धर्म ग्रंथ  

HINDU DHARMA GRANTH

हिन्दू ग्रंथों के कारण ही विश्व में भारत को सभ्यता का अग्रज तथा विश्व गुरू माना जाता है।  किन्तु आज अंग्रेज़ी पाठ्यक्रम पद्धति से पढ़े लिखे भारतीय युवाओं को अज्ञान के कारण अपने पूर्वजों पर गर्व और विशवास नहीं, और अपने आप पर भरोसा और साहस भी नहीं कि वह इस अनमोल विरासत को पुनः विश्व पटल पर सुशोभित कर सकें। वह मानसिक तौर पर प्रत्येक तथ्य को पाश्चात्य मापदण्डों से ही प्रमाणित करने के इतने ग़ुलाम हो चुके हैं कि मौलिक ग्रन्थ को अंग्रेज़ी प्रतिलिपि के आघार पर ही प्रमाणित करने की माँग करते हैं।
वेद प्राचीनतम हिंदू ग्रंथ हैं। वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'विद्' शब्द से हुई है। विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, इसलिये वेद को "ज्ञान का ग्रंथ कहा जा सकता है। हिंदू मान्यता के अनुसार ज्ञान शाश्वत है अर्थात् सृष्टि की रचना के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा। चूँकि वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति भी कहा जाता हैं। वेद संख्या में चार हैं जो हिन्दू धर्म के आधार स्तंभ हैं।
                   ·         ऋगवेद       ·         सामवेद      ·         अथर्ववेद    ·         यजुर्वेद
 यद्यपि वेद से ऋग्वेदयजुर्वेदसामवेद तथा अथर्ववेद की संहिताओं का ही बोध होता है, तथापि हिन्दू लोग इन संहिताओं के अलावा ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों तथा उपनिषदों को भी वेद ही मानते हैं। इनमें ऋक् आदि संहितायें स्तुति प्रधान हैं; ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञ कर्म प्रधान हैं और आरण्यक तथा उपनिषद् ज्ञान चर्चा प्रधान हैं।

वेदों के उपवेद
निम्नलिखित क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।  उप वेद प्रत्येक वेद के एक या एक से अधिक कई उप वेद हैं जिन में मूल अथवा अन्य विषयों पर अतिरिक्त ज्ञान है।
ऋग्वेद का आयुर्वेद,
यजुर्वेद का धनुर्वेद,
सामवेद का गंधर्ववेद और
अथर्ववेद का स्थापत्य वेद 
संहितायें
ऋग्वेद संहिता - यह चारों संहिताओं में प्रथम गिनी जाती है। अन्य संहिताओं में इसके अनेक सूक्त संग्रह 
किये गये हैं। यह अष्टकों और मण्डलों में विभक्त है, जो फिर वर्गों और अनुवाकों में विभक्त है। इसमें 10 मण्डल 
हैं, जिनमें 1017 सूक्त है। इन सूक्तों में शौनक की अनुक्रमणी के अनुसार 10,580 मंत्र है। यह संहिता सूक्तों 
अर्थात् स्तोत्रों का भण्डार है।

सामवेद संहिता - यह कोई स्वतन्त्र संहिता नहीं है। इसके अधिकांश मन्त्र ऋग्वेद के ही हैं। केवल 78 मंत्र इसके अपने हैं। कुल 1549 मन्त्र हैं। यह संहिता दो भागों में विभक्त है -

   * पूर्वार्चिक : पूर्वार्चिक - छ: प्रपाठकों में विभक्त है। इसे `छन्द´ और `छन्दसी´ भी कहते हैं। पूर्वार्चिक को   
    `प्रकृति´ भी कहते हैं
    * उत्तरार्चिक : उत्तरार्चिक को `ऊह´ और `रहस्य´ कहते हैं।

यजुर्वेद संहिता - इस वेद की दो संहितायें हैं -
1.   शुक्ल यजुर्वेद संहिता: शुक्ल यजुर्वेद याज्ञवल्क्य को प्राप्त हुआ। उसे `वाजसनेयि-संहिता´ भी कहते हैं।`वाजसनेयि-संहिता´ की 17 शाखायें हैं। उसमें 40 अध्याय हैं। उसका प्रत्येक अध्याय कण्डिकाओं में विभक्त है, जिनकी संख्या 1975 है। इसके पहले के 25 अध्याय प्राचीन माने जाते हैं और पीछे के 15 अध्याय बाद के। इसमें दर्श पौर्णमास, अग्निष्टोम, वाजपेय, अग्निहोत्र, चातुर्मास्य, अश्वमेध, पुरूषमेध आदि यज्ञों के वर्णन है।
2.   कृष्ण यजुर्वेद संहिता: कृष्ण-यजुर्वेद-संहिता शुक्ल से की है। उसे `तैत्तिरिय-संहिता´ भी कहते हैं। यजुर्वेद के कुछ मन्त्र ऋग्वेद के हैं तो कुछ अथर्ववेद के हैं। `तैत्तिरिय-संहिता´ 7 अष्टकों या काण्डों में विभक्त है। इस संहिता में मन्त्रों के साथ ब्राह्मण का मिश्रण है। इसमें भी अश्वमेध, ज्योतिष्टोम, राजसूय, अतिरात्र आदि यज्ञों का वर्णन है।

अथर्ववेद संहिता - यह संहिता 20 काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड अनुवाकों और अनुवाक 760 सूक्तों में 
विभक्त है। इस संहिता में 1200 मन्त्र ऋक्-संहिता के हैं। कुल मन्त्र संख्या 6015 है।

वेदांग
     वेदों के 6 अंग हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त
1.   शिक्षा - इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है।
2.   कल्प - वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है। इसकी चार शाखायें हैं- श्रौतसूत्रगृह्यसूत्र धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र
3.   व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
4.   निरूक्त - वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है।
5.   ज्योतिष - इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।
6.   छन्द - वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होता है।

वेद से निकला षड्दर्शन / उपांग ग्रंथ
सृष्टि के आरम्भ से ही मानव निजि पहचान, सृष्टि, एवं सृष्टि कर्ता के बारे में जिज्ञासु रहा है और उन से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर ढूंडता रहा है। इन्हीं प्रश्नों के उत्तरों की खोज ने ही हिन्दू आध्यात्मवाद की दार्शनिक्ता को जन्म दिया है। ऋषि मुनियों ने अपनी अन्तरात्मा में झांका तथा सूक्ष्मता से गूढ मंथन कर के तथ्यों का दर्शन किया। प्रथक प्रथक ऋषियों ने जो संकलन किया था उसी के आधार पर छः प्रमुख विचार धाराओं को षट-दर्शन कहा जाता है, जो भारतीय दार्शनिक्ता की अमूल्य धरोहर हैं। दर्शन शास्त्रों में बहुत सी समानतायें हैं क्योकि उन का मूल स्त्रोत्र उपनिष्द ही हैं।वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। इसे भारत का षड्दर्शन कहते हैं।
        1.     न्याय                                        2.     वैशेषिक                                    3.     सांख्य
        4.     योग                                          5.     मीमांसा                                     6.     वेदांत
ये 6 उपांग ग्रंथ उपलब्ध हैं। इसे ही षड्दर्शन कहते हैं उक्त 6 को वैदिक दर्शन (आस्तिक-दर्शन)  कहा गया है। 

सूत्र-ग्रन्थ
इनमें मुख्य-मुख्य यज्ञों की विधियाँ, समाज की व्यवस्था के नियम, गृहस्थों के आन्हिक कृत्य एवं संस्कार तथा वैसी ही दूसरी धार्मिक बातें बताई बताई गई है।
ॠग्वेदीय सूत्र-ग्रन्थ: आश्वलायन श्रौतसूत्र शांखायन श्रौतसूत्र आश्वलायन गृह्यसूत्र शांखायन गृह्यसूत्र वासिष्ठ धर्मसूत्र
यजुर्वेदीय सूत्र-ग्रन्थ: कात्यायन श्रौतसूत्र पारस्कर श्रौतसूत्र विष्णु धर्मसूत्र पारस्कर गृह्यसूत्र / आपस्तम्ब श्रौतसूत्र आपस्तम्बगृह्यसूत्र हिरण्यकेशि श्रौतसूत्रबौधायन गृह्यसूत्र बौधायन श्रौतसूत्र वैखानस गृह्यसूत्र भारद्वाज श्रौतसूत्र हिरण्यकेशीय गृह्यसूत्र वैखानस श्रौतसूत्रमानव धर्म-सूत्र बाधूल श्रौतसूत्र काठक धर्मसूत्र आपस्तम्ब धर्मसूत्र वराह श्रौतसूत्र बौधायन धर्मसूत्र मानव गृह्यसूत्र वैखानस धर्मसूत्र काठक गृह्यसूत्र हिरण्यकेशीय धर्मसूत्र
सामवेदीय सूत्र-ग्रन्थमसकसूत्र लाट्यायन सूत्र खदिर श्रौतसूत्र जैमिनीय गृह्यसूत्र गोभिल
गृह्यसूत्र · खदिर गृह्यसूत्र · गौतम धर्मसूत्र · द्राह्यायण गृह्यसूत्र · द्राह्यायण धर्मसूत्र
अथर्ववेदीय सूत्र-ग्रन्थ: वैतान श्रौतसूत्र कौशिक गृह्यसूत्र वराह गृह्यसूत्र वैखानस गृह्यसूत्र

उपनिषद
वेदों के संकलन के पश्चात भी कई ऋषियों ने अपनी अनुभूतियों से ज्ञान कोष में वृद्धि की है। उन्होंने संकलित ज्ञान की व्याख्या, आलोचना तथा उस में संशोधन भी किया है। इस प्रकार के ज्ञान को उपनिष्दों तथा दर्शन शास्त्रों के रूप में संकलित किया गया है। उपनिष्दों की मूल संख्या लगभग 108 200 तक थी, किन्तु यह मानव समाज का दुर्भाग्य है कि अधिकत्म उपनिष्दों को अहिन्दूओं की धर्मान्धता के कारण नष्ट कर दिया गया था। उपनिषद को वेद का शीर्ष भाग कहा गया है और यही वेदों का अंतिम सर्वश्रेष्ठ भाग होने के कारण 'वेदांत' कहलाए। इनमें ईश्वर, सृष्टि और आत्मा के संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है। उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है, लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं। 
मुख्य 12 उपनिषद:
1. ईश                                 2. केन                      3. कठ                    4. प्रश्न
5. मुण्डक                            6. माण्डूक्य              7. तैत्तिरीय              8. ऐतरेय
9. छांदोग्य                         10. बृहदारण्यक       11. कौषीतकि         12. श्वेताश्वतर 

ॠग्वेदीय उपनिषद:
ऐतरेय उपनिषद आत्मबोध उपनिषद कौषीतकि उपनिषद निर्वाण उपनिषद नादबिन्दुपनिषद सौभाग्यलक्ष्मी उपनिषद अक्षमालिक उपनिषद भवऋचा उपनिषद मुदगल उपनिषद त्रिपुरा उपनिषद बहवृचोपनिषद मृदगलोपनिषद राधोपनिषद

यजुर्वेदीय उपनिषद: 
अध्यात्मोपनिषद आद्यैतारक उपनिषद भिक्षुकोपनिषद बृहदारण्यकोपनिषद ईशावास्योपनिषद हंसोपनिषद जाबालोपनिषद मंडल ब्राह्मण उपनिषद मन्त्रिकोपनिषद मुक्तिका उपनिषद निरालम्बोपनिषद पैंगलोपनिषद परमहंसोपनिषद सत्यायनी उपनिषद सुबालोपनिषद तारासार उपनिषद त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद तुरीयातीतोपनिषद अद्वयतारकोपनिषद याज्ञवल्क्योपनिषद शाट्यायनीयोपनिषद शिवसंकल्पोपनिषद अक्षि उपनिषद अमृतबिन्दु उपनिषद अमृतनादोपनिषद अवधूत उपनिषद ब्रह्म उपनिषद ब्रह्मविद्या उपनिषद दक्षिणामूर्ति उपनिषद ध्यानबिन्दु उपनिषद एकाक्षर उपनिषद गर्भ उपनिषद कैवल्योपनिषद कालाग्निरुद्रोपनिषद कर उपनिषद कठोपनिषद कठरुद्रोपनिषद क्षुरिकोपनिषद नारायणो पंचब्रह्म प्राणाग्निहोत्र उपनिषद रुद्रहृदय सरस्वतीरहस्य उपनिषद सर्वासार उपनिषद शारीरिकोपनिषद स्कन्द उपनिषद शुकरहस्योपनिषद श्वेताश्वतरोपनिषद तैत्तिरीयोपनिषद तेजोबिन्दु उपनिषद वराहोपनिषद योगकुण्डलिनी उपनिषद योगशिखा उपनिषद योगतत्त्व उपनिषद कलिसन्तरणोपनिषद चाक्षुषोपनिषद
सामवेदीय  उपनिषद:
आरुणकोपनिषद दर्शनोपनिषद जाबालदर्शनोपनिषद जाबालि उपनिषदकेनोपनिषद महात्संन्यासोपनिषद मैत्रेयीउपनिषद मैत्रायणी उपनिषद अव्यक्तोपनिषद छान्दोग्य उपनिषद रुद्राक्षजाबालोपनिषद सावित्र्युपनिषद संन्यासोपनिषद वज्रसूचिकोपनिषद वासुदेवोपनिषद चूड़ामणि उपनिषद कुण्डिकोपनिषद जाबाल्युपनिषद महोपनिषद मैत्रेय्युग्पनिषद योगचूडाण्युपनिषद
अथर्ववेदीय उपनिषद:
अन्नपूर्णा उपनिषद अथर्वशिर उपनिषद अथर्वशिखा उपनिषद आत्मोपनिरुषद भावनोपनिषद भस्मोपनिषद बृहज्जाबालोपनिषद देवी उपनिषद दत्तात्रेय उपनिषद गणपति उपनिषद गरुडोपनिषद गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद ह्यग्रीव उपनिषद कृष्ण उपनिषद महानारायण उपनिषद माण्डूक्योपनिषद महावाक्योपनिषद मुण्डकोपनिषद नारदपरिव्राजकोपनिषद नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद परब्रह्मोपनिषद प्रश्नोपनिषद परमहंस परिव्राजक उपनिषद पशुपत उपनिषद श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद शाण्डिल्योपनिषद शरभ उपनिषदसूर्योपनिषद सीता उपनिषद राम-रहस्य उपनिषद त्रिपुरातापिन्युपनिषद
ब्राह्मण ग्रन्थ
इस श्रेणी के ग्रन्थ वेद के अंग ही माने जाते हैं। ये दो विभागों में विभक्त है। एक विभाग के कर्मकाण्ड-सम्बन्धी हैं, दूसरे विभाग के ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी है।

ॠग्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ:  ऐतरेय ब्राह्मण कौषीतकि ब्राह्मण शांखायन ब्राह्मण
यजुर्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ: शतपथब्राह्मण(काण्वब्राह्मण) शतपथ (माध्यन्दिन) ब्राह्मण / तैत्तिरीय ब्राह्मण मध्यवर्ती ब्राह्मण
सामवेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ: ताण्ड्य ब्राह्मण षडविंश ब्राह्मण सामविधान ब्राह्मण आर्षेय ब्राह्मण मन्त्र ब्राह्मण •  देवताध्यानम् ब्राह्मण वंश ब्राह्मण संहितोपनिषद ब्राह्मण जैमिनीय ब्राह्मण जैमिनीयार्षेय ब्राह्मण जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण
अथर्ववेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ: गोपथ ब्राह्मण
आरण्यक ग्रन्थ
आरण्यक हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च ग्रन्थ वेदों का गद्य वाला खण्ड है। ये वैदिक वांग्मय का तीसरा हिस्सा है और वैदिक संहिताओं पर दिये भाष्य का दूसरा स्तर है। इनमें दर्शन और ज्ञान की बातें लिखी हुई हैं, कर्मकाण्ड के बारे में ये चुप हैं। इनकी भाषा वैदिक संस्कृत है। वेद, मंत्र तथा ब्राह्मण का सम्मिलित अभिधान है। मंत्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् (आपस्तंबसूत्र)। ब्राह्मण के तीन भागों में आरण्यक अन्यतम भाग है।

हर वेद का एक या अधिक आरण्यक होता है। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है। आरण्यकों का वेदानुसार परिचय इस प्रकार है-
·         ऐतरेय आरण्यक                                             ·         कौषीतकि आरण्यक या शांखायन आरण्यक
·         तावलकर (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक      ·         छान्दोग्य आरण्यक
·         वृहदारण्यक                                                     ·         तैत्तिरीय आरण्यक
·         मैत्रायणी आरण्यक
स्मृति ग्रन्थ
जिन महर्षियों ने श्रुति के मन्त्रों को प्राप्त किया, उन्हींने अपनी स्मृति की सहायता से जिन धर्मशास्त्रों के ग्रन्थों की रचना की, वे `स्मृति ग्रन्थ´ कहे गये हैं।
इनमें समाज की धर्ममर्यादा - वर्णधर्मआश्रम-धर्मराज-धर्मसाधारण धर्मदैनिक कृत्यस्त्री-पुरूष 
का कर्तव्य आदि का निरूपण किया है। मुख्य स्मृतिकार ये हैं और इन्हीं के नाम पर इनकी 
स्मृतियाँ है:    
१.मनु                  २.अत्रि                ३.विष्णु                      ४.हारीत
५.याज्ञवल्क्य             ६.उशना                ७.अंगिरा                  ८.यम
९.आपस्तम्ब             १०.संवर्त               ११.कात्यायन                १२.बृहस्पति
१३.पराशर              १४.व्यास                १५.शंख                    १६.लिखित
१७.दक्ष                 १८.गौतम                १९.शातातप                २०.वशिष्ठ
इनके अलावा निम्न ऋषि भी स्मृतिकार माने गये हैं और उनकी स्मृतियाँ उपस्मृतियाँ मानी जाती हैं।
१ गोभिल               २ जमदग्नि              ३ विश्वामित्र               ४ प्रजापति
५ वृद्धशातातप            ६ पैठीनसि             ७ आश्वायन               ८ पितामह
९ बौद्धायन               १० भारद्वाज              ११ छागलेय               १२ जाबालि
१३ च्यवन               १४ मरीचि               १५ कश्यप … आदि
मनु स्मृति मनु स्मृति विश्व में समाज शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रथम ग्रंथ है। जीवन से जुडे़ सभी विषयों के बारे में मनु स्मृति के अन्दर उल्लेख है। समाज शास्त्र के जो सिद्धान्त मनु स्मृति में दर्शाये गये हैं वह तर्क की कसौटी पर आज भी खरे उतरते हैं और संसार की सभी सभ्य जातियों में समय के साथ साथ थोड़े परिवर्तनों के साथ मान्य हैं। मनु स्मृति में सृष्टि पर जीवन आरम्भ होने से ले कर विस्तरित विषयों के बारे में जैसे कि समय-चक्र, वनस्पति ज्ञान, राजनीति शास्त्र, अर्थ व्यवस्था, अपराध नियन्त्रण, प्रशासन, सामान्य शिष्टाचार तथा सामाजिक जीवन के सभी अंगों पर विस्तरित जानकारी दी गई है। समाजशास्त्र पर मनु स्मृति से अधिक प्राचीन और सक्ष्म ग्रंथ अन्य. किसी भाषा में नहीं है।

पुराण

वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण आम आदमियों के द्वारा उन्हें समझना बहुत कठिन था, इसलिये रोचक कथाओं के माध्यम से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओं के संकलन को पुराण कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं में ज्ञान, सत्य घटनाओं तथा कल्पना का संमिश्रण होता है। पुराण ज्ञानयुक्त कहानियों का एक विशाल संग्रह होता है। पुराणों को वर्तमान युग में रचित विज्ञान कथाओं के जैसा ही समझा जा सकता है। पुराण संख्या में अठारह हैं। पुराणों में सृष्टिक्रम, राजवंशावली, मन्वन्तर-क्रम, ऋषिवंशावली, पंच-देवताओं की उपासना, तीर्थों, व्रतों, दानों का माहात्म्य विस्तार से वर्णन है। इस प्रकार पुराणों में हिन्दु धर्म का विस्तार से ललित रूप में वर्णन किया गया है। पुराण हिन्दुओं की एक अमूल्य साहित्यक धरोहर हैं जिन पर प्रत्येक हिन्दू को गर्व होना चाहिये।
18 पुराणों के नाम विष्णुपुराण में इस प्रकार है -
ब्रह्मपुराण                      पद्मपुराण                      विष्णुपुराण            शिवपुराण - वायु पुराण
श्रीमद्भावत महापुराण  - देवी भागवत महापुराण     6 नारदपुराण            7 मार्कण्डेय पुराण
अग्निपुराण                   भविष्यपुराण               10 ब्रह्म वैवर्त पुराण  1लिंगपुराण
12 वाराह पुराण               13 स्कन्द पुराण              14 वामन पुराण        15 कूर्मपुराण
16 मत्स्यपुराण              17 गरुड़पुराण                   18 ब्रह्माण्ड पुराण

इनके अलावा देवी भागवत में 18 उप-पुराणों का उल्लेख भी है -
1.गणेश पुराण              2.नरसिंह पुराण             3.कल्कि पुराण                     4.एकाम्र पुराण
5.कपिल पुराण             6.दत्त पुराण                   7.श्रीविष्णुधर्मौत्तर पुराण       8.मुद्गगल पुराण
9.सनत्कुमार पुराण     10.शिवधर्म पुराण         11.आचार्य पुराण                   12.मानव पुराण
13.उश्ना पुराण             14.वरुण पुराण              15.कालिका पुराण                 16.महेश्वर पुराण
17.साम्ब पुराण           18.सौर पुराण             
                                           अन्य,
1.पराशर पुराण    2.मरीच पुराण    3.भार्गव पुराण   4.हरिवंश पुराण   5.सौरपुराण   6.प्रज्ञा पुराण
पशुपति पुराण नाम के 11 उपपुराण या `अतिपुराण´ और भी मिलते हैं।

महाकाव्य तथा इतिहास
प्राचीन काल में कवि ही महाकाव्यों के माध्यम से इतिहास का संरक्षण भी करते थे। भारत में कई महाकाव्य लिखे गये हैं। उन में रामायण तथा महाभारत का विशेष स्थान है। क्योंकि रामायण तथा महाभारत ने भारत के जन जीवन तथा उस की विचार धारा को अत्याधिक प्रभावित किया है।

रामायण रामायण  की रचना ऋषि वाल्मीकि ने की है तथा यह विश्व साहित्य का प्रथम ऐतिहासिक महा काव्य है। रामायण की कथा भगवान विष्णु के राम अवतार की कथा है। राम का चरित्र कर्तव्य पालन में एक आदर्श पुत्र, पति, पिता तथा राजा के कर्तव्य पालन का प्रत्येक स्थिति के लिये एक कीर्तिमान है।  महा काव्य में केवल राम का पात्र ही मर्यादा पुरुषोत्तम का है और रामायण के अन्य पात्र मानव गुणों तथा अवगुणों की दृष्ठि से सामान्य हैं। वाल्मीकि रामायण से प्रेरणा ले कर कई कवियों ने राम कथा पर महाकाव्यों की रचना की जिन में से गोस्वामी तुलसीदास कृत हिन्दी महा काव्य राम चरित मानस सर्वाधिक लोकप्रिय है। रामायण पर अनेक कवितायें, नाटक, निबन्ध आदि भी लिखे गये हैं तथा रामायण के कथानक पर बहुत से चल-चित्रों का भी निर्माण हुआ है। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि विश्व साहित्य में रामायण ही एकमात्र महाकाव्य है जिस की नायिका सीता अति सुन्दर राजकुमारी वर्णित है परन्तु उस के सौन्दर्य का वर्णन करते समय कवि उस में मातृ छवि ही देखता है तथा निजि माता की तरह ही सीता को सम्बोधन करता है। रामायण का अनुवाद विश्व की सभी भाषाओं में हो चुका है तथा भारतीय संस्कृति का कोई भी पहलू ऐसा नहीं जिसे इस महा काव्य ने छुआ ना हो।
Shri Ramcharit Manas Free Download in PDF -  Tulsi Ramayan Free Download in PDF

महाभारत_  महाभारत विश्व साहित्य का सब से विस्तरित ऐतिहासिक महाकाव्य है। मुख्यतः इस ग्रंथ में भारत के कितने ही वंशों की कथा को पिरोया गया है जो तत्कालित समय की घटनाओं तथा जीवन शैली का चित्रण करता है। इस महाकाव्य में हर पात्र मुख्य कथानक में निजि गाथा के साथ संजीव हो कर जुड़ता है तथा मानव जीवन की उच्चता और नीचता को दर्शाता है। रामायण में तो केवल राम का चरित्र ही आदर्श कर्तव्यपरायणता का प्रत्येक स्थिति के लिये  कीर्तिमान है किन्तु महाभारत में सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन की कई घटनाओं तथा परिस्थतियों में समस्याओं से जूझना चित्रित किया गया है। रामायण और महाभारत काल में दर्शायी गयी भारतीय सभ्यता एक अति विकसित सभ्यता है तथा दर्शाये गये पात्र महामानव होते हुये भी यथार्थ लगते हैं। जहाँ रामायण का कथाक्षेप भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा श्री-लंका के भूगौलिक क्षेत्र में विचरता है वहीं महाभारत का पटाक्षेप समस्त भारतवर्ष में फैला हुआ है। इस से प्रमाणित होता है कि प्राचीन काल से ही भारत एक विस्तर्ति राष्ट्र था।
Mahabharat Free Download in PDF        -        Free Download Mahabharat

श्रीमद्भगवद् गीता_ मानव जीवन के हर पहलू से जुड़ी श्रीमद् भगवद् गीता सब से प्राचीन दार्शनिक ग्रंथ है जो आज भी हर परिस्थिति में अपनाने योग्य है। गीता समस्त वैदिक तथा उपनिष्दों के ज्ञान का सारांश है तथा सहज भाषा में कर्तव्य परायणता की शिक्षा देती है। यदि कोई किसी अन्य ग्रंथ को ना पढ़ना चाहे तो भी पूर्णतया सफल जीवन जीने के लिये केवल गीता की दार्शनिक्ता ही पर्याप्त है।

Shrimad Bhagwat Geeta Free Download    -    Free Download Shrimad Bhagwat Geeta

No comments:

Post a Comment